दोनों में से एक जो औरत थी उस का उपनाम सोनी था। कविता लिखने से वह कययित्री कहलाती थी। जो एक और था वह शरीर से पुरुष, उपनाम से सोना और कर्म से कवि था। इन दो उपनामों से पहले उन के उपनाम कुछ और हुआ करते थे। प्रेम हो जाने पर दोनों ने एक पेड़ के नीचे आधे बैठ कर और आधे लेट कर नए उपनाम के लिए सहमति जताते हुए कहा था - वाह, क्या नाम है सोना और सोनी।
दोनों इतने बड़े कवि होते थे कि राष्ट्र उन के लिए राष्ट्रीय मंच बनवा कर राष्ट्रवादी कविता पाठ करवाता था। देखा देखी दूसरे भी कवि बनने के लिए मचले। खास कर देखा गया कि सोना और सोनी से प्रेरित हो कर बहुत से छायावादी कवि राष्ट्रवादी हो गए। एकाध कवि तो राष्ट्रीय भावना में इतने पगे कि अब उनसे यही होता कि भीख का कटोरा लेकर राष्ट्र के लिए वोट की याचना करने निकल पड़ते। दिन में वोटवादी राष्ट्रवाद निभता और रात को अपने बंद कमरे में कवितावाद का निर्वाह हो रहा होता। पर इतनी जी तोड़ मेहनत के बाद भी कोई सोना और सोनी के राष्ट्रवाद के उत्कर्ष को छू नहीं पाता था। जिस राष्ट्र में काव्य प्रेमी काव्य श्रवण से भागते हों उस राष्ट्र के राष्ट्रीय पति कहे जाने वाले राष्ट्रपति को शाम शुरू होने से लेकर आधी रात तक कविता सुना देना और उनकी ओर से सुन लिया जाना अलौकिक ही तो होता। सोना और सोनी की यह अलौकिकता कवियों और कवयित्रियों के गले न उतरने से वे कहते थे - सोना और सोनी को इंद्रजाल आता है।
राष्ट्रवादी सोना और सोनी की शादी के वक्त किसी ने अफवाह उड़ा दी थी कि शादी के मंडप से दोनों कविता पाठ करने वाले हैं। इस अफवाह को सच में देखने के लिए यहाँ तक कि बहुत से नीरस लोगों के भीतर सरस काव्य - प्रेम पैदा हो गया था। सोना और सोनी ने सुना था विवाह मंडप में उनसे काव्य पाठ की ऐसी आशा की गई है। परंतु क्या, लोगों की इस चाह को दोनों पूरा कर पाते? दुल्हन होने से सोनी को सोचना था अब तो मैं भाँड़ सोना का कपड़ा धोने और उस की धौंस सुनने वाली उस की जरखरीद औरत हो गई। उधर सोना को इस दंश से गुजरना था कि अब तो भाँड़िन सोनी अपने कवि पति से तकाजा करेगी महँगे दाम की साड़ी खरीद कर लाओ। शुक्र था कि विवाह मंडप में उपस्थित लोगों में से किसी ने शोर मचा कर नहीं कहा अपने-अपने काव्य पाठ की झड़ी लगाओ। लोगों ने इतना ही किया कि अपने-अपने हाथों से फूलों की झड़ी लगा कर गठबंधन के प्रति मंगलवाद का पारंपरिक धर्म निभाया और पंडालवादी शादी से मुक्त होने के बाद बाहर में बँट रहे मिठाईवादी मेले ठेले में अपने-अपने हिस्से की मिठाई ले कर घरवादी होने के नाते अपने-अपने घर चले गए।
सोना और सोनी यह मानते थे कि दोनों को प्रेम ने बांधा था और कालांतर में शादी का झमेला पैदा हुआ। अब मानने और मनाने में मुख्य रूप से यह तय होना था कि किस की कविता को बड़ा होना है? यही तय न हो पाता था। जिस रोज झगड़े के कारण प्रेम का अच्छा-खासा सुवास सूखे पेड़ के पत्ते बन कर झड़ा उस रोज दोनों अलग-अलग बैठे कविता लिखते रह गए थे। दोनों ने अब कविता ही लिखी, प्रेम नहीं किया। यहीं से उनके राष्ट्रवाद का पतन होना शुरू हुआ। राष्ट्रीय महिला मंत्रियों को लगा सोनी तो अपनी कविता के बल पर उन्हें लंबे बालों की निर्बुद्धि औरत समझ कर गाली देती है। राष्ट्रीय पुरुष मंत्री, एम.एल.ए. राष्ट्रपति आदि को महसूस हुआ सोना अपनी कविता से उनकी पत उतारता है।
शादी के बाद सोना और सोनी का एक ही बार राष्ट्रीय मंच से काव्य पाठ हो पाया। दोनों अब राष्ट्र विरोधी काव्यकार हो गए थे। इसी में उनके पति विरोधी और पत्नी विरोधी तेवर की खाना पूर्ति हो जाया करती थी।